हमारा शहर सिमगा रायपुर -बिलासपुर मुख्य मार्ग पर बसा हुआ है ,किसी भी तीज त्यौहार मे खुशियां मनाते और झांकियां निकालते इस मार्ग पर आने जाने वाले लोग हमारे शहर कि खुशियों का आनंद उठा सकते हैं कुछ इसी तरह का माहौल दशहरे की सुबह थी ,इस दिन यहां सुबह से ही मां दुर्गा के विर्सजन की खुब जोर शोर से तैयारी की जाती है जिसमे प्रमुख रुप से सांग निकाला जाता है जिसको देखने शहर एवं आस-पास के लोग भारी मात्रा मे यहां आते है !
खैर ............ अब मुद्दे पर आते है दशहरे के रोज खुशियां मनाते नाचते-गाते एक टोली मां दुर्गा के विर्सजन मे जा रही थी, की तेज रफ़्तार से आती हुई एक बस ने उस टोली मे नाच रहे एक 17 साल के लड्के को अपनी चपेट मे ले लिया जिससे उसकी घटना स्थल पर ही मौत हो गयी ,जिसके बाद से लोगो मे आक्रोश फ़ूट पडा और जोश के चलते उन लोगो ने बस मे आग लगा दी,बस फ़िर क्या था धीरे धीरे ये बात सारे नगर मे फ़ैल गयी और फ़िर प्रारंभ हुआ बस जलाने का सिलशिला और देखते ही देखते बारह बसों को आग के हवाले कर दिया गया ,जब ये सारे बस जलाये जा रहे थे तब सिमगा पुलिस मुकदर्शी बनकर तमाशा देख रही थी क्योंकी यहां पर्याप्त स्टाप नही है आनन -फ़ानन मे रायपुर जिला मुख्यालय से पुलिस बल भिजवाये गये लेकिन तब तक भीड अपना काम कर चुकी थी पुरे दिन चले इस ताडंव के बाद शाम को ये शहर बिल्कुल शांत हो गया था,लेकिन अब पुलिस सक्रिय हो चुकी थी और दुसरे दिन से चालू हुआ पुलिस का अभियान इस कांड मे शामिल लोगो पकडने का, इस प्रकरण मे लगभग तीन दर्जन लोगो की गिरफ़्तारी हुई और सभी लोग जेल भेज दिये गये !
जो लोग इस प्रकरण मे फ़से वो लोग अधिकांश गरीब तपके के लोग थे ,इनके जेल जाने के बाद उनके परिवार वालों ने वकीलो के और कचहरी के चक्कर लगाना चालू किया लेकिन मामला गभींर होने के कारण उनकी जमानत नही हो पायी साथ ही पुलिस ने मामले के अन्वेषण मे लंबा समय लगा दिया अब पुन: एक बार सभी के परिवार वालो को फ़िर एक आश जगी है लगभग तीन माह के बाद सुनने मे आया है की सिमगा पुलिस चालान तैयार कर चुकी है और उसे न्यायालय मे पेश करने वाली है ,बडे वकीलो का कहना है की चालान पेश होने के बाद जमानत होने की पूर्ण संभावना है !
सिमगा समाचार
Sunday, January 4, 2009
Friday, February 22, 2008
प्रसिध्द स्थल सोमनाथ
धार्मिक एवं प्राक्रितिक सौर्दंय से परिपुर्ण छत्तीसगढ का गौरव बढाता है शिवनाथ नदी के तट स्थित सोमनाथ . लाखों श्रध्दालु भगवान शिव का दशेन करने यहां माघ मास के महिने मे आते है .यहां की प्राक्रितिक सौर्दंयता के कारण दुर दुर से लोग यहां पिकनिक मनाने आते हैं .
रायपुर -बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सांकरा(बाइस मिल) से पश्चिम दिशा मे आठ कि.मी. की दुरी पर सोमनाथ स्थित है .यह छत्तीसगढ का प्रसिध्द धार्मिक स्थल है .
शायद आप लोगो ने इसके बारे मे सुना होगा ……..
प्राक्रितिक सौन्दर्य से परिपुर्ण शिवनाथ नदी के तट पर यह भगवान शंकर का बसेरा है . जहां प्रतिवर्ष माघ पुर्णिमा को मेला लगता है जिसमे हजारों श्रध्दालु शिव जी का दर्शन करने यहां पहुचंते है सिमगा छेत्र मे यह सबसे बडे मेले के रुप मे जाना जाता है .
सोमनाथ संगम स्थल के रुप मे भी प्रसिध्द है .यहां शिवनाथ नदी और खारुन नदी का संगम हुआ है .इसे त्रिवेणी संगम कहते है .अब आप सोचेगें की दो नदियों के संगम को त्रिवेणी संगम कैसे कहते है .खारुन नदी जब यहां पहुचंती है तो अपने साथ कोल्हान नदी को समाहित किये हुए यहां आती है .इसलिए इसे त्रिवेणी संगम कहते है .
यहां आने वाले श्रध्दालु और पर्यट्क को भगवान शिव की भक्ति के साथ -साथ यहां का मनोरम द्रिश्य यहां खिचता हुआ ले आता है .नदी का किनारा ,बडे -बडे पेड चारो ओर घना जंगल एक भक्ति पुर्ण माहौल यहां रुकने के लिये किसी को भी मजबुर कर देगा .
आइए अब इस प्रसिध्द स्थल के इतिहास को जाने ……….
ऎसा बताया जाता है की करीब डेढ- दो सौ साल पहले यहां बंजारो का एक समुदाय आ कर रुका . उस वक्त यहां घनघोर जंगल था .उन बंजारो के समुदाय मे एक व्यक्ति की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी .इस बात की जानकारी उनके मुखिया को हुइ .मुखिया बहुत चिंतित हुआ .जब रात को मुखिया जी सो रहे थे तब उनको शिव जी का सपना आया की मै प्रगट होना चाहता हु मै यही निवास कर रहा हु .और तुम लोग जब यहां आये तो मेरी ओर ध्यान नही दिया इसिलिए तुम्हारे साथी पर विपत्ती आयी .सबेरे मुखिया ने सारी बातें अपने साथीयों को बतायी तब जन्हा मुखिया सोया था उस स्थान की खुदाई की गयी एक डेढ फ़िट खोदने के बाद उन्हे शिव लिंग आकर का पत्थर मिला .
उस पत्थर को वहीं स्थापित कर एक छोटी सी कुटिया बना कर वो बंजारों का समुह वहां से चला गया .
उस शिव लिगं की खासियत यह है की वह अभी भी भुमि मे गडा हुआ है और धीरे -धीरे बडा होता जा रहा है
(चित्र संजीव तिवारी जी एवं छ.ग.पर्यटन से साभार )
रायपुर -बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सांकरा(बाइस मिल) से पश्चिम दिशा मे आठ कि.मी. की दुरी पर सोमनाथ स्थित है .यह छत्तीसगढ का प्रसिध्द धार्मिक स्थल है .
शायद आप लोगो ने इसके बारे मे सुना होगा ……..
प्राक्रितिक सौन्दर्य से परिपुर्ण शिवनाथ नदी के तट पर यह भगवान शंकर का बसेरा है . जहां प्रतिवर्ष माघ पुर्णिमा को मेला लगता है जिसमे हजारों श्रध्दालु शिव जी का दर्शन करने यहां पहुचंते है सिमगा छेत्र मे यह सबसे बडे मेले के रुप मे जाना जाता है .
सोमनाथ संगम स्थल के रुप मे भी प्रसिध्द है .यहां शिवनाथ नदी और खारुन नदी का संगम हुआ है .इसे त्रिवेणी संगम कहते है .अब आप सोचेगें की दो नदियों के संगम को त्रिवेणी संगम कैसे कहते है .खारुन नदी जब यहां पहुचंती है तो अपने साथ कोल्हान नदी को समाहित किये हुए यहां आती है .इसलिए इसे त्रिवेणी संगम कहते है .
यहां आने वाले श्रध्दालु और पर्यट्क को भगवान शिव की भक्ति के साथ -साथ यहां का मनोरम द्रिश्य यहां खिचता हुआ ले आता है .नदी का किनारा ,बडे -बडे पेड चारो ओर घना जंगल एक भक्ति पुर्ण माहौल यहां रुकने के लिये किसी को भी मजबुर कर देगा .
आइए अब इस प्रसिध्द स्थल के इतिहास को जाने ……….
ऎसा बताया जाता है की करीब डेढ- दो सौ साल पहले यहां बंजारो का एक समुदाय आ कर रुका . उस वक्त यहां घनघोर जंगल था .उन बंजारो के समुदाय मे एक व्यक्ति की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी .इस बात की जानकारी उनके मुखिया को हुइ .मुखिया बहुत चिंतित हुआ .जब रात को मुखिया जी सो रहे थे तब उनको शिव जी का सपना आया की मै प्रगट होना चाहता हु मै यही निवास कर रहा हु .और तुम लोग जब यहां आये तो मेरी ओर ध्यान नही दिया इसिलिए तुम्हारे साथी पर विपत्ती आयी .सबेरे मुखिया ने सारी बातें अपने साथीयों को बतायी तब जन्हा मुखिया सोया था उस स्थान की खुदाई की गयी एक डेढ फ़िट खोदने के बाद उन्हे शिव लिंग आकर का पत्थर मिला .
उस पत्थर को वहीं स्थापित कर एक छोटी सी कुटिया बना कर वो बंजारों का समुह वहां से चला गया .
उस शिव लिगं की खासियत यह है की वह अभी भी भुमि मे गडा हुआ है और धीरे -धीरे बडा होता जा रहा है
(चित्र संजीव तिवारी जी एवं छ.ग.पर्यटन से साभार )
Tuesday, February 19, 2008
साहेब बंदगी साहेब
विश्व विख्यात ग्राम दामाखेडा कबीर दास जी के वंशजो मे छ्त्तीसगढ मे कबीर धाम जिला जिसका नाम कवर्धा था ,से कबीर धर्म का प्रचार प्रसार का केन्द्र था ! इस स्थान से कबीर दास जी के वंशज उग्रमुनि नाम साहेब ने कबीर धर्म का प्रचार किया और धर्म के प्रचार के लिये निकल गये ! जिसके बाद उन्होने सिमगा से दस कि.मी. दुर बिलासपुर मार्ग पर दामाखेडा नामक गांव को कबीर धर्म के प्रचार का केन्र्द बनाया ! दामाखेडा मे उन्होने गुरु गद्दी की स्थापना भी की ! आज इस ग्राम मे विश्व भर से लोग गुरु गद्दी का दर्शन करने हर वर्ष आते है !
उग्रमुनि नाम साहेब के बाद इस गुरु गद्दी पर गृन्धमुनि नाम साहेब बैठे जिसके बाद अभी वर्तमान मे प्रकाशमुनि नाम साहेब इस गुरु गद्दी पर आसिन है !
कबीर दास जी ने कहा है …..आल्हम दुनी सवै फ़िरी खोजी ,हरि बिन सकल अयाना !
छह दरसन छय नवै पाखण्ड ,आकुल्ह बिनु हूं न जाना !!
जिस युग मे कबीर दास जी ने जन्म लिया वह युग धार्मिक जटिलता का युग था !कबीर दास जी समाज के सजग प्रहरी थे .
हर वर्ष बसंत पंचमी से इस मेले का प्रारंभ होता है .इसे संत समागम मेला कहा जाता है .इस मेले कबीर धर्म के संतो एंव अनुयायियो को लाखो की संख्या मे देखा जा सकता है ! इस मेले मे बीस प्रान्तो से लोग आते है इतना ही नही इस समय गुरु गद्दी का दर्शन करने के लिये अन्य देशो से भी कबीर धर्म के अनुयायी यहां इकठ्ठा होते है
विश्व विख्यात कबीर धर्म के चलते आज छत्तीसगढ को भी विश्व मे लोग जानने लगे है !इस धर्म नगरी मे जब साहेब की चौका आरती होती है तब हजारो की संख्या मे दीप प्रज्वलित की जाती है जिसका द्रिश्य बडा ही मनोरम होता है
इस पावन धरा पर आकर ही एक आन्दन की अनुभुति हो जाती है कबीर दास जी के विचारो को अपने अन्तर मन मे बसाने के लिये ग्राम दामाखेडा बडा ही अनुकुल स्थान है
दामाखेडा जाने के लिये
थल मार्ग ….रायपुर से बिलासपुर की ओर रायपुर से साठ कि.मी.
वायु मार्ग …निकटतम विमान स्थल माना (रायपुर )
Wednesday, January 23, 2008
नक्सली हिंसा.....................?
आज हम सभी छ्त्तीसगट कि परीस्थिति से वाकिफ़ है .राज्य मे नक्सली गतिविघियां बट रही है .आज और कल कि खबर साफ़ बताती है की अब नक्सली हमारे प्रमुख शहरो को अपना निशाना बना रहे है .आखिर ऎसी क्या बात है जिसे लेकर शासन और नक्सली आपस मे झगड रहे है .इस झगडे से जहां आम आदमी अकारण मारा जा रहा है वहीं नेता इसे अपने राजनितक नजरिये के चलते भुनाने मे लगे हुये है .
.शासन नक्सलीयों को राज्य द्रोही समझता है .और नक्सली इसे अपने विचारों कि लडाई शायद?लेकिन दोनो ही सुरत मे इसका परिणाम आम जनता भोगती है .इस लडाई मे जहां शासन के सिपाही अपनी जान हथेली मे रख कर मैदान मे उतरे है वहीं नक्सलीयों का एक समुदाय अपनी जान देने को तैयार खडा है .इस समुदाय कि विशेसता यह है की महिलाएं भी अपने जान की परवाह नही करती .यह कैसा जुनुन है आखिर वो कौन सा कारण है जो इन नक्सलीयों के जुनुन मे शामिल है .शासन तो शांती चाहती है क्यो कि जनता शांती चाहती है .जनता का आदेश तो शासन और उनके शासक को मानना ही होगा .
इन सारे बातो के पीछे मेरा आशय यह है कि राज्य की दो करोड जनता भी जाने कि राज्य विद्रोह करने वाले नक्सली आखिर चाहतें क्या है ? .अंततः ये राज्य ,ये धरती, भी तो उन्ही की है .यहां बसने वाले लोग भी उन्ही के है फ़िर ये हिसां कि सौगात किसके लिये .आम जनता नक्सलीयों के विसय मे र्सिफ़ इतना ही जानती है की इनका काम आम लोगो को मारना और दहशत फ़ैलाना है .यदि इनकी कुछ मांगे है और वो जायज है तो ये मागें आम जनता के समझ मे आने चाहिए क्योकी इनकी गतिविधियां आम जनता को प्रभावित करती है .ये गतिविधियां आम जनता की जिदगीं से जुडी हुइ है .शासन तो अपनी ओर से प्रयास करती है के जनता की सुरछा कर सके .
अखबारो मे छपे खबरो के अनुसार सुदंरनगर के डंगनिया मोड पर हथियारो से भरा बैग छोड्ने वाली महिला नक्सली अपने तीन साथियों के साथ पकडी गयी है .राज्य के बडे शहरो मे इस तरह हथियार बरामत होना साफ़ जाहिर करता है की नक्सलीयों की योजनाएं कीतनी खतरनाक रही होगी .क्या कीसी निर्दोस व्यक्ती के मरने से किसी को फ़ायदा हो सकता है .ये बात मेरी समझ से तो परे है .पर इतना जरुर कहुगां के कोइ भी इंसान हिंसा का बेवजह पछ्धर नही हो सकता चाहे हो नक्सली ही क्यों न हो .
मित्रो मेरे जहन मे जो था वो मैने बयां कर दिया हो सकता है मेरे विचारो मे कुछ त्रुटी हो ……………..
.शासन नक्सलीयों को राज्य द्रोही समझता है .और नक्सली इसे अपने विचारों कि लडाई शायद?लेकिन दोनो ही सुरत मे इसका परिणाम आम जनता भोगती है .इस लडाई मे जहां शासन के सिपाही अपनी जान हथेली मे रख कर मैदान मे उतरे है वहीं नक्सलीयों का एक समुदाय अपनी जान देने को तैयार खडा है .इस समुदाय कि विशेसता यह है की महिलाएं भी अपने जान की परवाह नही करती .यह कैसा जुनुन है आखिर वो कौन सा कारण है जो इन नक्सलीयों के जुनुन मे शामिल है .शासन तो शांती चाहती है क्यो कि जनता शांती चाहती है .जनता का आदेश तो शासन और उनके शासक को मानना ही होगा .
इन सारे बातो के पीछे मेरा आशय यह है कि राज्य की दो करोड जनता भी जाने कि राज्य विद्रोह करने वाले नक्सली आखिर चाहतें क्या है ? .अंततः ये राज्य ,ये धरती, भी तो उन्ही की है .यहां बसने वाले लोग भी उन्ही के है फ़िर ये हिसां कि सौगात किसके लिये .आम जनता नक्सलीयों के विसय मे र्सिफ़ इतना ही जानती है की इनका काम आम लोगो को मारना और दहशत फ़ैलाना है .यदि इनकी कुछ मांगे है और वो जायज है तो ये मागें आम जनता के समझ मे आने चाहिए क्योकी इनकी गतिविधियां आम जनता को प्रभावित करती है .ये गतिविधियां आम जनता की जिदगीं से जुडी हुइ है .शासन तो अपनी ओर से प्रयास करती है के जनता की सुरछा कर सके .
अखबारो मे छपे खबरो के अनुसार सुदंरनगर के डंगनिया मोड पर हथियारो से भरा बैग छोड्ने वाली महिला नक्सली अपने तीन साथियों के साथ पकडी गयी है .राज्य के बडे शहरो मे इस तरह हथियार बरामत होना साफ़ जाहिर करता है की नक्सलीयों की योजनाएं कीतनी खतरनाक रही होगी .क्या कीसी निर्दोस व्यक्ती के मरने से किसी को फ़ायदा हो सकता है .ये बात मेरी समझ से तो परे है .पर इतना जरुर कहुगां के कोइ भी इंसान हिंसा का बेवजह पछ्धर नही हो सकता चाहे हो नक्सली ही क्यों न हो .
मित्रो मेरे जहन मे जो था वो मैने बयां कर दिया हो सकता है मेरे विचारो मे कुछ त्रुटी हो ……………..
Sunday, January 13, 2008
गाँव वालों ने सरपंच को जलाकर मार डाला
सिमगा जनपद में आने वाले गाँव नेवारी-फुलवारी में ऐसा क्या हो गया की सारे गाँव वालों ने मिलकर अपने ही गाँव के सरपंच को जला डाला .आइए जाने ----------------
लगभग ३५ से ४० वर्ष का भोला सतनामी एक सजा याफ्ता मुजरिम था .उसके खिलाफ कई मामले थाने में दर्ज भी थे .यह युवक गाँव नेवारी का सरपंच था .फुलवारी और नेवारी ग्राम जुड़ा हुआ है और एक ही पंचायत है . घटना के रात को नेवारी में नाच गाने का कार्यक्रम था .गाँव वालों ने इस कार्यक्रम में सरपंच को निमत्रण नहीं दिया था .जिस बात को लेकर सरपंच ने उसी रात शराब पी कर खूब हंगामा मचाया .गाँव के लोग उसकी आपराधिक प्रवृति के कारण उससे डरते थे .लिहाजा उस समय किसी की हिम्मत नहीं हुई के उससे उलझे .मौके पर पुलिस भी थी .पुलिस ने सरपंच को शांत कर घर जाने को कहा .सरपंच भोला अपने घर आ कर अपने घर के ऊपर दो लौंडीस्पीकर लगा जोर जोर से अश्लील गलियां देने लगा .बेचारे गाँव वालों ने उस वक्त गालीयों को सुन खून के गुंट पी कर रह गए .ऐसे तैसे रात गुजर गयी .परन्तु सरपंच साहब का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था .
सुबह होते ही शराब के नशे में चूर सरपंच ने अपने घर से दो तलवार निकाल दोनों गाँव के रस्ते में जा बैठा .सरपंच के साथ उसका एक साथी भी था .दोना शराब के नशे में थे .जैसे ही गाँव वालों की चहल पहल चालू हुई सरपंच तलवार दिखा कर धमकाने लगा की कोई भी गाँव वाला इस रस्ते से आना जाना नहीं करेगा .वह ग्रामीण को आने जाने से रोक रहा था .उसी समय गाँव के ४-५ ग्रामीण आये जिनसे उसने मार पिट भी की .इस बात को सुन सारा गाँव आक्रोश में आ गया और एक समूह बनाकर सारा गाँव उसे समझाने आया परन्तु सरपंच और गाँव वालों के विवाद इतना गहरा गया की गाँव वालो ने सरपंच को पीटना सुरु कर दिया जिस पर सरपंच ने ग्रामीणों पर तलवार से हमला कर दिया .अब गाँव वालो ने भी आक्रोश में आ कर उसे खूब पीटा सरपंच डर कर भगा पहले वह अपने घर जा घुसा तब गाँववालो ने उसे घर से बाहर निकल कर मारा इस बीच सरपंच के बीबी बच्चों ने भी लड़ाई छुडाने का प्रयास किया परन्तु गाँव वालो के सर पर खून सवार था .
सरपंच भोला राम को अधमरा करने के बाद ग्रामीणों उसी के घर से सारा समान निकाल कर आग लगा दिया और सरपंच को भी उसी आग के हवाले कर दिया .दरअसल गाँव वाले सरपंच की दादागिरी से त्रस्त थे .ग्रामीणों का आक्रोश आज फट पड़ा था . जब इस बात की खबर पुलिस को हुई तब तक सरपंच जल चूका था .इस घटना को सभी ग्रामवासी ने अपने सर लेकर १८० लोगों ने अपनी गिरफ्तारी पुलिस को दी .इस सारे मामले में एक बात सामने आती है की बुरे का अंत तो होता है .किन्तु क्या यह कहना सही होगा के बुरे का अंत करने के लिए हिंसा को समाज में स्थान मिलना चाहिए?
लगभग ३५ से ४० वर्ष का भोला सतनामी एक सजा याफ्ता मुजरिम था .उसके खिलाफ कई मामले थाने में दर्ज भी थे .यह युवक गाँव नेवारी का सरपंच था .फुलवारी और नेवारी ग्राम जुड़ा हुआ है और एक ही पंचायत है . घटना के रात को नेवारी में नाच गाने का कार्यक्रम था .गाँव वालों ने इस कार्यक्रम में सरपंच को निमत्रण नहीं दिया था .जिस बात को लेकर सरपंच ने उसी रात शराब पी कर खूब हंगामा मचाया .गाँव के लोग उसकी आपराधिक प्रवृति के कारण उससे डरते थे .लिहाजा उस समय किसी की हिम्मत नहीं हुई के उससे उलझे .मौके पर पुलिस भी थी .पुलिस ने सरपंच को शांत कर घर जाने को कहा .सरपंच भोला अपने घर आ कर अपने घर के ऊपर दो लौंडीस्पीकर लगा जोर जोर से अश्लील गलियां देने लगा .बेचारे गाँव वालों ने उस वक्त गालीयों को सुन खून के गुंट पी कर रह गए .ऐसे तैसे रात गुजर गयी .परन्तु सरपंच साहब का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था .
सुबह होते ही शराब के नशे में चूर सरपंच ने अपने घर से दो तलवार निकाल दोनों गाँव के रस्ते में जा बैठा .सरपंच के साथ उसका एक साथी भी था .दोना शराब के नशे में थे .जैसे ही गाँव वालों की चहल पहल चालू हुई सरपंच तलवार दिखा कर धमकाने लगा की कोई भी गाँव वाला इस रस्ते से आना जाना नहीं करेगा .वह ग्रामीण को आने जाने से रोक रहा था .उसी समय गाँव के ४-५ ग्रामीण आये जिनसे उसने मार पिट भी की .इस बात को सुन सारा गाँव आक्रोश में आ गया और एक समूह बनाकर सारा गाँव उसे समझाने आया परन्तु सरपंच और गाँव वालों के विवाद इतना गहरा गया की गाँव वालो ने सरपंच को पीटना सुरु कर दिया जिस पर सरपंच ने ग्रामीणों पर तलवार से हमला कर दिया .अब गाँव वालो ने भी आक्रोश में आ कर उसे खूब पीटा सरपंच डर कर भगा पहले वह अपने घर जा घुसा तब गाँववालो ने उसे घर से बाहर निकल कर मारा इस बीच सरपंच के बीबी बच्चों ने भी लड़ाई छुडाने का प्रयास किया परन्तु गाँव वालो के सर पर खून सवार था .
सरपंच भोला राम को अधमरा करने के बाद ग्रामीणों उसी के घर से सारा समान निकाल कर आग लगा दिया और सरपंच को भी उसी आग के हवाले कर दिया .दरअसल गाँव वाले सरपंच की दादागिरी से त्रस्त थे .ग्रामीणों का आक्रोश आज फट पड़ा था . जब इस बात की खबर पुलिस को हुई तब तक सरपंच जल चूका था .इस घटना को सभी ग्रामवासी ने अपने सर लेकर १८० लोगों ने अपनी गिरफ्तारी पुलिस को दी .इस सारे मामले में एक बात सामने आती है की बुरे का अंत तो होता है .किन्तु क्या यह कहना सही होगा के बुरे का अंत करने के लिए हिंसा को समाज में स्थान मिलना चाहिए?
Sunday, January 6, 2008
कुछ योजनाएं मध्यम स्तर परिवार के लिए
मित्रों सादर नमस्कार .
आप सब लोगों को पता ही होगा की छत्तीसगढ़ की सरकार कुछ दिनों बाद ३रु किलो में गरीबों को चावल देने की विकोसौन्मुख योजना बना चुकी है .इस योजना से गरीबों को लाभ मिलेगा .इसी तरह की काफी योजनाएं हमारे शासन के द्वारा बनाये जाते हैं .जिससे गरीब जनता लाभान्वित होती है .वहीं हमारे राज्य में उद्योग पतियों के लिए भे योजनाये चल रही है जिससे की वह अपने उद्योग निति को विस्तृत कर सकें और अपना उद्योग लगा सकें .
जब मैं इन नीतियों की देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की कास मैं भी गरीब होता या कोई बड़ा उद्योग पति .परन्तु क्या करूं मैं एक मध्यम परिवार का पढा लिखा बेरोजगार हूँ .जिसके लिए शासन के पास भाषण देने के अलावा और कुछ नहीं है .
आइए अब विचार करतें है की क्या शासन की योजनाओं का लाभ
गरीब जनता और उद्योग पति तक पहुँचता है .
उद्योग पति तो अपनी दम्दारी और धन सम्पनता के दम पर अपना काम करवा लेते हैं परन्तु इन गरीबों की कमाई से लाभ भी उद्योग पति ही कमातें है या यूँ कहें की इसमें वो अपनी व्यापारिक कुशलता दिखातें हैं .कुछ लोग तो सम्पन्न होकर भी अपना नाम सरकारी फाइलों में कमजोर गरीब के नाम पर दर्ज करा लेते हैं आज जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है .मध्यम स्तर के परिवार के सामने एक समस्या खडी हो गयी है .गरीब तो शासन की योजनाओं के सहारे जी लेगा .उद्योग पति के पास वैसे भी कोई कमी नहीं .परन्तु वाह रे मध्यम स्तर व्यक्ति आखिर करे भी तो क्या ?बाप नौकरी में है.छोटा सा घर है घर में सुख सुविधा की चीजें भी हैं .बाप की जीवन भर की कमाई में उसने कुछ उपलब्धियाँ तो हासिल की एक तो अपने बच्चों की शादी और दूसरा एक छोटा सा घर .अब उसके बच्चों को अपने बाप की स्टेटस को बनाये रखना है .समाज में उनके मान सम्मान को बनाये रखना है .आज हर चीज को बनाये रखने के लिए अगर किसी चीज की आवश्यकता है तो वो है सिर्फ पैसा . रोजगार वान बाप का बेरोजगार बेटा इन सब चीजों को सम्हाले तो कैसे .अपना परिवार चलाने के लिए दो पैसा कमाए तो कैसे गरीबों की तरह मजदूरी करने से उसे उसके बाप का स्टेटस रोकता है .कोई बड़ा काम करने के लिए उसे उसकी पारिवारिक एवम आर्थिक स्थिति रोकती है .अरे शासन की कोई योजना भी तो नहीं है जिसका वो सहारा ले सके .क्योकि शासन तो गरीबों और उद्योग पतियों पर अपनी सारी योजनाओं का क्रियान्वन कर चूका है . मित्रों यह मेरे विचार हैं यदि आपको पसंद न आये तो छमा चाहूँगा .अच्छा लगे तो आशीर्वाद जरुर दें
आप सब लोगों को पता ही होगा की छत्तीसगढ़ की सरकार कुछ दिनों बाद ३रु किलो में गरीबों को चावल देने की विकोसौन्मुख योजना बना चुकी है .इस योजना से गरीबों को लाभ मिलेगा .इसी तरह की काफी योजनाएं हमारे शासन के द्वारा बनाये जाते हैं .जिससे गरीब जनता लाभान्वित होती है .वहीं हमारे राज्य में उद्योग पतियों के लिए भे योजनाये चल रही है जिससे की वह अपने उद्योग निति को विस्तृत कर सकें और अपना उद्योग लगा सकें .
जब मैं इन नीतियों की देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की कास मैं भी गरीब होता या कोई बड़ा उद्योग पति .परन्तु क्या करूं मैं एक मध्यम परिवार का पढा लिखा बेरोजगार हूँ .जिसके लिए शासन के पास भाषण देने के अलावा और कुछ नहीं है .
आइए अब विचार करतें है की क्या शासन की योजनाओं का लाभ
गरीब जनता और उद्योग पति तक पहुँचता है .
उद्योग पति तो अपनी दम्दारी और धन सम्पनता के दम पर अपना काम करवा लेते हैं परन्तु इन गरीबों की कमाई से लाभ भी उद्योग पति ही कमातें है या यूँ कहें की इसमें वो अपनी व्यापारिक कुशलता दिखातें हैं .कुछ लोग तो सम्पन्न होकर भी अपना नाम सरकारी फाइलों में कमजोर गरीब के नाम पर दर्ज करा लेते हैं आज जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है .मध्यम स्तर के परिवार के सामने एक समस्या खडी हो गयी है .गरीब तो शासन की योजनाओं के सहारे जी लेगा .उद्योग पति के पास वैसे भी कोई कमी नहीं .परन्तु वाह रे मध्यम स्तर व्यक्ति आखिर करे भी तो क्या ?बाप नौकरी में है.छोटा सा घर है घर में सुख सुविधा की चीजें भी हैं .बाप की जीवन भर की कमाई में उसने कुछ उपलब्धियाँ तो हासिल की एक तो अपने बच्चों की शादी और दूसरा एक छोटा सा घर .अब उसके बच्चों को अपने बाप की स्टेटस को बनाये रखना है .समाज में उनके मान सम्मान को बनाये रखना है .आज हर चीज को बनाये रखने के लिए अगर किसी चीज की आवश्यकता है तो वो है सिर्फ पैसा . रोजगार वान बाप का बेरोजगार बेटा इन सब चीजों को सम्हाले तो कैसे .अपना परिवार चलाने के लिए दो पैसा कमाए तो कैसे गरीबों की तरह मजदूरी करने से उसे उसके बाप का स्टेटस रोकता है .कोई बड़ा काम करने के लिए उसे उसकी पारिवारिक एवम आर्थिक स्थिति रोकती है .अरे शासन की कोई योजना भी तो नहीं है जिसका वो सहारा ले सके .क्योकि शासन तो गरीबों और उद्योग पतियों पर अपनी सारी योजनाओं का क्रियान्वन कर चूका है . मित्रों यह मेरे विचार हैं यदि आपको पसंद न आये तो छमा चाहूँगा .अच्छा लगे तो आशीर्वाद जरुर दें
Friday, January 4, 2008
और कितनी लड़ाई लड़नी होगी चौरेंगा वाशियों को
आज से ४साल् पहले शायद आप ने सुना, पड़ा या देखा होगा की सिमगा जनपद में आने वाले चौरेंगा नामक ग्राम ने अपनी एकता को जीत दिला कर स्पंज आयरन की फक्ट्री को बंद कराने में सफलता अर्जित की थी ।परन्तु इस विवाद को ले कर उन्हें खून के आंशु रोना पड़ा था उन्हें अपने ही ग्राम के एक युवा नरेन्द्र वर्मा को खोना पड़ा था ।सारा ग्राम आज भी यही कहता है की हमारा जीवन उद्योगपतियों की चालबाजी का शिकार हो गया ।आज भी कम से कम एक दर्जन से भी अधिक लोग जेल की सलाखों के पीछे बंद है ।और सारा ग्राम उसी अँधेरी रात को याद करता है जिस रात ग्राम के ही बहुत से लोगो ने आक्रोश वश नरेन्द्र और शेट्टी की लाठी से मार कर हत्या कर दी. दरअसल नरेन्द्र ने उस दिन शराब के नसे में कुछ उत्पात मचाया था उस गाँव में .ऐसा बताया जाता है की जब गाँव वालों और उद्योग पतियों के बीच विवाद चल रहा था तब उद्योग पतियों द्वारा गाँव वालों को डराने के मकसद से नरेन्द्र को अपनी तरफ मिला कर गाँव में जबरन बदमाशी करा कर वहाँ के माहोल को ganda करने का प्रयास चल रहा था .आइए अब संछिप्त में इस सारे घटनाक्रम को जाने चौरेंगा गांव में रायपुर शहर के एक उद्योगपति ने अपनी फैक्ट्री बनायीं उस फैक्ट्री का काम पूरा होने के बाद गाँव वालों ने प्रदुषण के डर से अपना विरोध दर्ज किया .चूँकि फैक्ट्री बन चुकी थी मालिक का कहना था की आप लोगों ने पहले विरोध की सूचना क्यों नहीं दी .विवाद यहीं से प्रारम्भ हुआ .फैक्ट्री के मालिक को भी अपनी लगायी हुयी पूँजी से प्यार था .परन्तु गाँव वालों की लगातार विरोध और एकता के सामने मालिक को अंतत: अपनी जिद छोड़नी पड़ी. इस सारे मामले को देखें तो उस मालिक ने भी पूरा प्रयास किया की फैट्री चालू हो जाये और इसी विवाद ने नरेद्र वर्मा और दीपक शेट्टी की जान ले ली .जिसके बाद माहौल शांत हो गया .और इस सारे मामले में कई गाँव वालों को अपना जीवन जेल की सलाखों के पीछे आज भी गुजरना पड़ रहा है .आज जब ४ साल बीत चुके हैं तब उस फैट्री को एक नए मालिक ने खरीद कर उसमे कम चालू करवा दिया है .नए मालिक का कहना hai ki उसके पास हाई कोर्ट की अनुमति है .परन्तु आज भी उन गांव वालों की हिम्मत टूटी नहीं है वे आज भी एक हो कर नए मालिक से मुकाबला करने को तैयार खडे है .
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